सागरमल गोपा, जिन्हें सागरमल जैन के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका जन्म 6 अक्टूबर, 1895 को भारत के राजस्थान के चुरू जिले के एक गाँव राजलदेसर में हुआ था।
सागरमल गोपा महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे और उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के उद्देश्य से विभिन्न पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया। वह असहयोग आंदोलनों, सविनय अवज्ञा अभियानों और ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ अन्य विरोध प्रदर्शनों के आयोजन में शामिल थे।
सागरमल गोपा के उल्लेखनीय योगदानों में से एक 1928 के बारडोली सत्याग्रह में उनकी भागीदारी थी, जो गुजरात के बारडोली क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा लगाई गई अन्यायपूर्ण कर नीतियों के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में एक अहिंसक प्रतिरोध आंदोलन था। गोपा ने आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने और स्थानीय समुदाय को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सागरमल गोपा सामाजिक सुधार के लिए भी प्रतिबद्ध थे और उन्होंने हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान, शिक्षा को बढ़ावा देने और अस्पृश्यता और जाति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। वह अहिंसा, सहिष्णुता और सांप्रदायिक सद्भाव के सिद्धांतों में विश्वास करते थे।
सागरमल गोपा जीवन भर भारतीय स्वतंत्रता और समाज के कल्याण के लिए समर्पित रहे। उनकी ईमानदारी, नेतृत्व और सत्य और न्याय के आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उनका गहरा सम्मान किया जाता था।
30 नवंबर 1982 को सागरमल गोपा का निधन हो गया, वे अपने पीछे साहस, बलिदान और राष्ट्र सेवा की विरासत छोड़ गए। उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति और सामाजिक न्याय और समानता के चैंपियन के रूप में याद किया जाता है।